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ऐग्रो होम्योपैथी कृषि में रसायनिक उर्वरकों और कीट नाशकों के उपयोग का प्रभावी विकल्प हैं। ऐग्रो होम्योपैथी में होम्योपैथिक दवा द्वारा किसान खेत में फसल पर उपयोग कर न सिर्फ फसल को कैटरपिलर, स्नेल इत्यादि कीटों और बीमारियों से बचा सकते हैं अपितु पौधों और फसल पर लगी बीमारियों को भी ठीक कर सकते हैं। डाॅ0 उमंग खन्ना होम्योपैथिक क्लीनिक पर लिखी गयी दवाओं से किसान लाभ उठा रहे हैं एवं खुशहाल हो रहे हैं।आज से लगभग 200 साल पहले होम्योपैथिक विज्ञान जर्मन चिकित्सक डा0 क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनिमैन ने दुनिया को दिया था। इस विज्ञान को मनुष्यों पर बहुत ही सफलता पूर्वक उपयोग कर प्रभावी इस्तेमाल किया गया है। होम्योपैथी का पौधों पर उपयोग एक नवीनतम विज्ञान है। आज के वक्त में यह विज्ञान खेती में प्रभावी रूप से इस्तेमाल हो रहा है। खास तौर से पौधों को बीमारियों से बचाने के लिए एग्रोहोम्योपैथी का महत्वपूर्ण यागदान मिट्टी और पौधे दोनों के न्यूट्रीशन के वातावरण को स्वतः रेग्यूलेट करने में भारी योगदान हो सकता है और होम्योपैथी पौधों की सेहत ठीक रखने के लिए उसके आइयोनक प्रभाव और/या रोग ऐजेन्टों को प्रभावी रूप से रोक सकती है। इसके अलावा होम्योपैथी रासायनिक फंजीसाइड के लिए एक कम लागत विकल्प हो सकता है। डाॅ0 उमंग खन्ना होम्योपैथिक क्लीनिक की सलाह पर किसानों द्वारा आसानी से उपयोग में लाया जा रहा है। इस लेख में हम इसी बात की चर्चा करेंगे कि कैसे होम्योपैथी के प्रभावी इस्तेमाल से पौधों को लगने वाले रोगों को ठीक किया जा सकता है और देश की जनता के लिए अत्यंत आवश्यक एवं उपयोगी कृषि उत्पाद को बढ़ाया जा सकता है। डाॅ हैनिमैन कहा करते थे अगर मेरे द्वारा कहे गऐ प्राकृतिक के नियम सही हैं तो होम्योपैथी को सभी जीवित प्रजातियों पर लागू किया जा सकता है। असल में होम्योपैथी की खोज ही सिनकोना की छाल पर हुई थी। भारत में कुछ वर्ष पहले तक जैविक खेती की परंपरा रही है। अत्याधिक तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या और खाद्य पदार्थों की आवश्यकता के बढ़ने पर हरित क्रांति का जन्म हुआ जिसने की पारंपरिक जैविक खेती एवं खाद को खत्म कर दिया। इसके बाद अत्यधिक आकर्षक अधिक उपज देने वाली तकनीक हाईब्रिड ने जन्म लिया जिससे पौधों के हाइब्रिड तैयार किये जाने लगे जो कहीं न कहीं प्रकृति द्वारा उत्पन्न इकोसिस्टम एवं स्वयं प्रकृति से छेड़छाड़ थी। यह पोषण जो कि जैविक खाद्य के साथ किसानों को दिया जाना था वैज्ञानिक पश्चिमी तरीकों को कापी कर रासायनिक उर्वकरकों की वकालत शुरू कर दिए। प्राकृतिक अनुयाईयों के रूप में कीट और रोग ने पौधें को पकड़ लिया और बीमारियाँ तेजी से गुणा होने लगीं इससे जेनेटिक बदलाव होने लगे और पौधों का जीवन ही दाँव पर लग गया। आज वैज्ञानिक और किसान दोनों ही इन खतरों से लड़ने में लग गये हंै बजाए की खेती की पैदावार के सुधार में। अब वह दिन दूर नहीं जब हरित क्रांति पूर्व की स्थिति पर जाना पड़ेगा लेकिन उसमे भारी निवेश होगा। परंपरागत जैविक खेती को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है। जब कि इसको खेती की अन्य विधियों द्वारा चलना चाहिए था।
मिट्टी पोषण समाप्त हो रहा है। मिट्टी के सप्लीमेन्टेशन के लिए सालों साल अधिक से अधिक मात्रा में केमिकल जोड़े जा रहे हैं। परिणामस्वरूप अधिक से अधिक कीट पैदा हो रहे हैं।
रसायनिक उर्वरकों में मिट्टी रोकने की क्षमता नहीं होती जिससे अधिक से अधिक मिट्टी नदियों में प्रवाहित हो रही हंै।
कीटों को नियंत्रित करने के लिए अधिक से अधिक शक्तिशाली (ज़हरीले) कीटनाशक विकसित किए जा रहे हैं।
कीट रसायनिक कीटनाशकों के विरूद्ध प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित कर रहे हैं जिससे अधिक से अधिक पैसा भी खर्च हो रहा है और रसायनिक उर्वरक फेल भी हो रहे हैं।
श्रंखला प्रतिक्रया (चेन रिऐक्शन) भी बढ़ रहे हैं।
यह धीमा ज़हर मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा उत्पन्न कर रहा है।
यह उर्वरक आत्महत्या और नरसंहार के माध्यम भी बन रहे हैं।
इन विनाशकारी आफ़्टर इफ़ेक्स से बचने के लिए डाॅ0 उमंग खन्ना होम्योपैथिक क्लीनिक पर ऐग्रोहोम्योपैथी की मदद ली जा सकती है। इन केमिकलों पर अनुसंधान बन्द करने एवं जैविक खेती में सुधार करनें का वक्त है।
मिट्टी पोषण समाप्त हो रहा है। मिट्टी के सप्लीमेन्टेशन के लिए सालों साल अधिक से अधिक मात्रा में केमिकल जोड़े जा रहे हैं। परिणामस्वरूप अधिक से अधिक कीट पैदा हो रहे हैं।
रसायनिक उर्वरकों में मिट्टी रोकने की क्षमता नहीं होती जिससे अधिक से अधिक मिट्टी नदियों में प्रवाहित हो रही हंै।
कीटों को नियंत्रित करने के लिए अधिक से अधिक शक्तिशाली (ज़हरीले) कीटनाशक विकसित किए जा रहे हैं।
कीट रसायनिक कीटनाशकों के विरूद्ध प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित कर रहे हैं जिससे अधिक से अधिक पैसा भी खर्च हो रहा है और रसायनिक उर्वरक फेल भी हो रहे हैं।
श्रंखला प्रतिक्रया (चेन रिऐक्शन) भी बढ़ रहे हैं।
यह धीमा ज़हर मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा उत्पन्न कर रहा है।
यह उर्वरक आत्महत्या और नरसंहार के माध्यम भी बन रहे हैं।
डाॅ0 उमंग खन्ना होम्योपैथिक क्लीनिक पर किसान भाईयों की मदद के लिए होम्योपैथिक दवाएँ मुफ्त उपलब्ध हैं।
एग्रोहाम्योपैथी पौधों एवं फसल के मर्जों का अत्याधिक सस्ते इलाज का उपाय है । डाॅ0 उमंग खन्ना होम्योपैथिक क्लीनिक पर प्रभावी रूप से इस्तेमाल हो रहा है।
लगभग 10 गोलियों की एक शीशी से 100 लीटर पानी में दवा बन जाती है।
डाॅ0 उमंग खन्ना होम्योपैथिक क्लीनिक पर किसानों को एक दवा कारा इंटरमीडिया 200ब् दी जाती है। यह तालाबों से शैवाल खत्म करने का प्रभावी उपचार है।
1 खुराक दवा त्र 10,000 लीटर पानी का तालाब
दवा का मूल्य 10/-रूपये मात्र
इस प्रकार इन दवाओं के प्रभावी उपयोग किसान अपनी फसल एवं अंततः अपने जीवन में खुशहाली ला सकता है। इस प्रकार होम्योपैथिक औषधि डाॅ0 उमंग खन्ना होम्योपैथिक क्लीनिक पर किसान पौधों एवं मानवता के लिए वरदान साबित हो रही है। डाॅ उमंग खन्ना होम्योपैथी द्वारा एग्रो होम्योपैथी के लाभों को संक्षेप रूप से निम्नलिखित लाभ लिखे हैं-
एग्रो होम्योपैथी निश्चित पैदावार करने के लिए कारगर उपाय है। यह मिट्टी, पौधों के जीवन और पैदावार सबको स्वस्थ रखता है। यह मिट्टी की क्वालिटी को पैदावार के लिए बढ़ाता है। इससे पौधों की उपज का प्राकृतिक स्वाद और रंग बरकरार रखता है। रोगों को कम कर देता है।
कीटनाशको का खेती पर उपयोग कम करता है। जहर और हानिकारक केमिकल्स से मुक्त चारा, उत्पादन और भोजन प्राप्त किया जा सकता है।
पर्यावरण प्रदूषण से पर्यावरण और किसान दोनों को बचाता है। किसान के पास घातक रासायनिक कीटनाशक न होने से आक्समिक आवेश में आत्महत्या से बचाता हैं। कीटों को प्रतिरोधात्मक क्षमता बनाने से रोकता है। इस प्रकार नये ड्रग रेसिस्टेंट कीटों की उत्पत्ति को रोकता है। आसानी से दवा ले जायी सकती है और हंैडलिंग शुल्क भी शून्य होता है।
यह रासायनिक उत्पादों से 200-300ः कम मूल्य पर उपलब्ध है। डाॅ0 उमंग खन्ना होम्योपैथिक क्लीनिक के मुताबिक यह सस्टेनेबल एग्रीकल्चर की ओर जाता है। यह विज्ञान जब अधिक से अधिक किसानों द्वारा उपयोग किया जायेगा तो यह संपूर्ण कृषि क्षेत्र और उसके लिए पसीना बहाने वाले किसानों के लिए एक क्रांति साबित होगा और संपूर्ण समाज पुराने वक्त के गौरवशाली जैविक खेती की ओर बढे़गा।
डाॅ0 उमंग खन्ना होम्योपैथिक क्लीनिक सरकारी सहयोग से एक समूह को कवर कर एक पाईलट परियोजना में योगदान कर सक्षम निगरानी में किसानों को जैविक खेती लागू करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
कृषि विश्वविद्यालय में इस परियोजना को लागू कर किसानों तक बात को पहुंचाया जाए। निगरानी के लिए किसानों को ही टेªनिंग दी जाए। एक रिसर्च विंग तैयार करके वर्तमान फामूर्ले में सुधार किया जाए और चूंकि अभी बहुत दवाओं की खोज बाकी है इसलिए विस्तृत कार्यक्रम तैयार किया जाए।
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Dr Umang Khanna is “The Top Homeopathic Influencer Of India” having more than 4 million followers on social media. The vast bank of authentic knowledge is providing millions the prespective to deal with the ailments.
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